काना सांभर
एक काना सांभर समुद्र के किनारे घास चर रहा था। अपने आपको किसी संभावित हमले से बचाने के लिए वह अपनी नज़र हमेशा ज़मीन की ओर रखता था जबकि अपनी कानी आँख समुद्र की ओर रखता था क्योंकि उसे समुद्र की ओर से किसी हमले की आशंका नहीं थी।
एक दिन कुछ नाविक उस ओर आए। जब उन्होंने सांभर को चरते हुए देखा तो आराम से उस पर निशाना साधकर अपना शिकार बना लिया।
अंतिम आंहें भरते हुए सांभर बोला - "मैं भी कितना अभागा हूँ। मैंने अपना सारा ध्यान ज़मीन की ओर लगा रखा था जबकि समुद्र की ओर से मैं आश्वस्त था। पर अंत में शत्रु ने उसी ओर से हमला किया।"
"खतरा प्रायः उसी ओर से दस्तक देता है
जिस ओर से आपने अपेक्षा न की हो।"
काम नहीं तो भोजन नहीं
हयाजूको चीनी जैन विद्या के एक प्रसिद्ध गुरू थे। वे अस्सी वर्ष की उम्र में भी अपने शिष्यों के साथ कठोर श्रम करते थे जैसे - बागवानी करना, मैदान साफ करना, पेड़ों की कटाई-छटाई करना....आदि।
उनके शिष्यों को यह देखकर दु:ख होता कि उनके वृद्ध शिक्षक इतना कठिन श्रम करते हैं। वे भी यह जानते थे कि उनके गुरू उनकी यह बात कभी नहीं मानेंगे कि वे कठिन श्रम न करें। इसलिये शिष्यों ने भी एक दिन उनके औजार छुपा दिये।
औजार नहीं मिलने से गुरूजी उस दिन कोई श्रम नहीं कर पाये। उस दिन गुरूजी ने कुछ नहीं खाया। अगले दिन भी उन्होंने कुछ नहीं खाया, और उसके अगले दिन भी नहीं।
उनके शिष्यों ने आपस में चर्चा की कि गुरूजी यह जानकर बहुत क्रोधित होंगे कि हम लोगों ने उनके औजार छुपा दिये इसलिये अच्छा होगा कि हम उनके औजार वापस रख दें।
उन्होंने ऐसा ही किया। गुरूजी ने उस दिन फिर परिश्रम किया और बाद में खाना खाया। उस शाम गुरूजी ने अपने शिष्यों को "काम नहीं तो भोजन नहीं" विषय पर व्याख्यान दिया।
एक काना सांभर समुद्र के किनारे घास चर रहा था। अपने आपको किसी संभावित हमले से बचाने के लिए वह अपनी नज़र हमेशा ज़मीन की ओर रखता था जबकि अपनी कानी आँख समुद्र की ओर रखता था क्योंकि उसे समुद्र की ओर से किसी हमले की आशंका नहीं थी।
एक दिन कुछ नाविक उस ओर आए। जब उन्होंने सांभर को चरते हुए देखा तो आराम से उस पर निशाना साधकर अपना शिकार बना लिया।
अंतिम आंहें भरते हुए सांभर बोला - "मैं भी कितना अभागा हूँ। मैंने अपना सारा ध्यान ज़मीन की ओर लगा रखा था जबकि समुद्र की ओर से मैं आश्वस्त था। पर अंत में शत्रु ने उसी ओर से हमला किया।"
"खतरा प्रायः उसी ओर से दस्तक देता है
जिस ओर से आपने अपेक्षा न की हो।"
काम नहीं तो भोजन नहीं
हयाजूको चीनी जैन विद्या के एक प्रसिद्ध गुरू थे। वे अस्सी वर्ष की उम्र में भी अपने शिष्यों के साथ कठोर श्रम करते थे जैसे - बागवानी करना, मैदान साफ करना, पेड़ों की कटाई-छटाई करना....आदि।
उनके शिष्यों को यह देखकर दु:ख होता कि उनके वृद्ध शिक्षक इतना कठिन श्रम करते हैं। वे भी यह जानते थे कि उनके गुरू उनकी यह बात कभी नहीं मानेंगे कि वे कठिन श्रम न करें। इसलिये शिष्यों ने भी एक दिन उनके औजार छुपा दिये।
औजार नहीं मिलने से गुरूजी उस दिन कोई श्रम नहीं कर पाये। उस दिन गुरूजी ने कुछ नहीं खाया। अगले दिन भी उन्होंने कुछ नहीं खाया, और उसके अगले दिन भी नहीं।
उनके शिष्यों ने आपस में चर्चा की कि गुरूजी यह जानकर बहुत क्रोधित होंगे कि हम लोगों ने उनके औजार छुपा दिये इसलिये अच्छा होगा कि हम उनके औजार वापस रख दें।
उन्होंने ऐसा ही किया। गुरूजी ने उस दिन फिर परिश्रम किया और बाद में खाना खाया। उस शाम गुरूजी ने अपने शिष्यों को "काम नहीं तो भोजन नहीं" विषय पर व्याख्यान दिया।
काना सांभर
Reviewed by Arvind RDX
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04:11
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